Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.11।। व्याख्या--'बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम्'--कठिन-से-कठिन काम करते हुए भी अपने भीतर एक कामना-आसक्तिरहित शुद्ध, निर्मल उत्साह रहता है। काम पूरा …
Bhagavad Gita 7.10
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.10।। व्याख्या--'बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि (टिप्पणी प0 405) पार्थ सनातनम्'--हे पार्थ ! सम्पूर्ण प्राणियोंका सनातन (अविनाशी) बीज मैं हूँ …
Bhagavad Gita 7.9
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.9।। व्याख्या--'पुण्यो गन्धः पृथिव्याम्'--पृथ्वी गन्ध-तन्मात्रासे उत्पन्न होती है, गन्ध-तन्मात्रारूपसे रहती है और गन्ध-तन्मात्रामें ही लीन होती है। …
Bhagavad Gita 7.8
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.8।। व्याख्या--[जैसे साधारण दृष्टिसे लोगोंने रुपयोंको ही सर्वश्रेष्ठ मान रखा है तो रुपये पैदा करने और उनका संग्रह करनेमें लोभी आदमीकी स्वाभाविक रुचि हो …
Bhagavad Gita 7.7
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.7।। व्याख्या--'मत्तः परतरं नान्यत् किञ्चिदस्ति धनञ्जय'--हे अर्जुन ! मेरे सिवाय दूसरा कोई कारण नहीं है, मैं ही सब संसारका महाकारण हूँ। जैसे वायु आकाशसे …
Bhagavad Gita 7.6
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.6।। व्याख्या--'एतद्योनीनि भूतानि' (टिप्पणी प0 401.1) जितने भी देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि जङ्गम और वृक्ष, लता, घास आदि स्थावर प्राणी हैं, …