Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.16।। व्याख्या--'चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन'--सुकृती पवित्रात्मा मनुष्य अर्थात् भगवत्सम्बन्धी काम करनेवाले मनुष्य चार प्रकारके होते हैं। …
Bhagvad Gita 7.15
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.15।। व्याख्या--'न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः'--जो दुष्कृती और मूढ़ होते हैं, वे भगवान्के शरण नहीं होते। दुष्कृती वे ही होते हैं, जो …
Bhagavad Gita 7.14
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.14।। व्याख्या--'दैवी ह्येषा गुणमयी (टिप्पणी प0 411) मम माया दुरत्यया'--सत्त्व, रज और तम--इन तीन गुणोंवाली दैवी (देव अर्थात् परमात्माकी) माया बड़ी …
Bhagavad Gita 7.13
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.13।। व्याख्या--'त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः ৷৷. परमव्ययम्'--सत्त्व रज और तम--तीनों गुणोंकी वृत्तियाँ उत्पन्न और लीन होती रहती हैं। उनके साथ तादात्म्य …
Bhagavad Gita 7.12
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.12।। व्याख्या--'ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये'--ये जो सात्त्विक, राजस और तामस भाव (गुण, पदार्थ क्रिया) हैं, वे भी मेरेसे ही उत्पन्न होते …
Bhagavad Gita 7.11
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.11।। व्याख्या--'बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम्'--कठिन-से-कठिन काम करते हुए भी अपने भीतर एक कामना-आसक्तिरहित शुद्ध, निर्मल उत्साह रहता है। काम पूरा …