Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.22।। व्याख्या--स तया श्रद्धया युक्तः ৷৷. मयैव विहितान्हि तान् मेरे द्वारा दृढ़ की हुई श्रद्धासे सम्पन्न हुआ वह मनुष्य उस देवताकी आराधनाकी चेष्टा …
Bhagavad Gita 7.21
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.21।। व्याख्या--'यो यो यां यां तनुं भक्तः ৷৷. तामेव विदधाम्यहम्'--जो-जो मनुष्य जिस-जिस देवताका भक्त होकर श्रद्धापूर्वक यजन-पूजन करना चाहता है ,उस-उस …
Bhagavad Gita 7.20
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.20।। व्याख्या--'कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः'--उनउन अर्थात् इस लोकके और परलोकके भोगोंकी कामनाओंसे जिनका ज्ञान ढक गया है, आच्छादित हो गया है। तात्पर्य है कि …
Bhagavad Gita 7.19
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.19।। व्याख्या बहूनां जन्मनामन्ते मनुष्यजन्म सम्पूर्ण जन्मोंका अन्तिम जन्म है। भगवान्ने जीवको मनुष्यशरीर देकर उसे जन्ममरणके …
Bhagavad Gita 7.18
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.18।। व्याख्या--उदाराः सर्व एवैते ये सब-के-सब भक्त उदार हैं, श्रेष्ठ भाववाले हैं। भगवान्ने यहाँ जो 'उदाराः'शब्दका प्रयोग किया है, उसमें कई …
Bhagavad Gita 7.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.17।। व्याख्या--'तेषां ज्ञानी नित्ययुक्तः' उन (अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु और ज्ञानी) भक्तोंमें ज्ञानी अर्थात् प्रेमी भक्त श्रेष्ठ है; क्योंकि वह …