कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि ।योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये ॥11॥ kāyena manasā buddhyā kevalairindriyairapiyoginaḥ karma kurvanti saṅgaṃ …
Bhagavad Gita 18.34
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.34।। व्याख्या -- यया तु धर्मकामार्थान्धृत्या ৷৷. सा पार्थ राजसी -- राजसी धारणशक्तिसे मनुष्य अपनी कामनापूर्तिके लिये धर्मका …
Bhagavad Gita 18.33
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.33।। व्याख्या -- धृत्या यया धारयते ৷৷. योगेनाव्यभिचारिण्या -- सांसारिक लाभहानि? जयपराजय? सुखदुःख? आदरनिरादर? सिद्धिअसिद्धिमें सम …
Bhagavad Gita 18.32
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.32।। व्याख्या -- अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसावृता -- ईश्वरकी निन्दा करना शास्त्र? वर्ण? आश्रम और लोकमर्यादाके विपरीत काम करना …
Bhagavad Gita 18.31
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.31।। व्याख्या -- यया धर्ममधर्मं च -- शास्त्रोंने जो कुछ भी विधान किया है? वह धर्म है अर्थात् शास्त्रोंने जिसकी आज्ञा दी है और …
Bhagavad Gita 18.30
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.30।। व्याख्या -- प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च -- साधकमात्रकी प्रवृत्ति और निवृत्ति -- ये दो अवस्थाएँ होती हैं। कभी वह संसारका …