सभी मनुष्य भगवत्प्राप्तिके अधिकारी हैं, चाहे वे किसी भी वर्ण, आश्रम, सम्प्रदाय, देश, वेश आदिके क्यों न हों। वे सभी भगवान्की तरफ चल सकते हैं, भगवान्का आश्रय लेकर भगवान्को प्राप्त कर सकते हैं।
भगवान्को इस बातका दुःख है, खेद है, पश्चात्ताप है कि ये जीव मनुष्यशरीर पाकर, मेरी प्राप्तिका अधिकार पाकर भी मेरेको प्राप्त न करके, मेरे पास न आकर मौत (जन्म-मरण) में जा रहे हैं। मेरेसे विमुख होकर कोई तो मेरी अवहेलना करके, कोई आसुरी सम्पत्तिका आश्रय लेकर और कोई सकामभावसे यज्ञ आदिका अनुष्ठान करके जन्म-मरणके चक्करमें जा रहे हैं। वे पापी-से-पापी हों, किसी नीच योनिमें पैदा हुए हों और किसी भी वर्ण, आश्रम, देश, वेश आदिके हों, वे सभी मेरा आश्रय लेकर मेरी प्राप्ति कर सकते हैं। अतः इस मनुष्यशरीरको पाकर जीवको मेरा भजन करना चाहिये।