अन्तकालीन चिन्तनके अनुसार ही जीवकी गति होती है, इसलिये मनुष्यको हरदम सावधान रहना चाहिये, जिससे अन्तकालमें भगवत्स्मृति बनी रहे।
अन्तसमयमें शरीर छूटते समय मनुष्य जिस वस्तु, व्यक्ति आदिका चिन्तन करता है, उसीके अनुसार उसको आगेका शरीर मिलता है। जो अन्तसमयमें भगवान्का चिन्तन करता हुआ शरीर छोड़ता है, वह भगवान्को ही प्राप्त होता है। उसका फिर जन्म-मरण नहीं होता। अतः मनुष्यको सब समयमें, सभी अवस्थाओंमें और शास्त्रविहित सब काम करते हुए भगवान्को याद रखना चाहिये, जिससे अन्तसमयमें भगवान् ही याद आयें। जीवनभर रागपूर्वक जो कुछ किया जाता है, प्रायः वही अन्तसमयमें याद आता है।