इस मनुष्यलोकमें सभीको निष्कामभावपूर्वक अपने कर्तव्यका तत्परतासे पालन करना चाहिये, चाहे वह ज्ञानी हो या अज्ञानी हो, चाहे वह भगवान्का अवतार ही क्यों न हो! कारण कि सृष्टिचक्र अपने-अपने कर्तव्यका पालन करनेसे ही चलता है।
मनुष्य न तो कर्मोंका आरम्भ किये बिना सिद्धिको प्राप्त होता है और न कर्मोंके त्यागसे सिद्धिको प्राप्त होता है। ब्रह्माजीने सृष्टि-रचनाके समय प्रजासे कहा कि तुमलोग अपने-अपने कर्तव्य-कर्मके द्वारा एक-दूसरेकी सहायता करो, एक-दूसरेको उन्नत करो तो तुमलोग परमश्रेयको प्राप्त हो जाओगे। जो सृष्टिचक्रकी मर्यादाके अनुसार अपने कर्तव्यका पालन नहीं करता, उसका इस संसारमे जीना व्यर्थ है। यद्यपि मनुष्यरूपमें अवतरित भगवान्के लिये इस त्रिलोकीमें कोई कर्तव्य नहीं है, फिर भी वे लोकसंग्रहके लिये अपने कर्तव्यका तत्परतासे पालन करते हैं। ज्ञानी महापुरुषको भी लोकसंग्रहके लिये अपने कर्तव्यका तत्परतासे पालन करना चाहिये। अपने कर्तव्यका निष्कामभावपूर्वक पालन करते हुए मनुष्य मर भी जाय, तो भी उसका कल्याण है।