Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas
।।18.76।। व्याख्या — राजन्संस्मृत्य ৷৷. मुहुर्मुहुः — सञ्जय कहते हैं कि हे महाराज भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुनका यह बहुत अलौकिक? विलक्षण संवाद हुआ है। इसमें कितना रहस्य भरा हुआ है कि घोरसेघोर युद्धरूप क्रिया करते हुए भी ऊँचीसेऊँची पारमार्थिक सिद्धि हो सकती है मनुष्यमात्र हरेक परिस्थितिमें अपना उद्धार कर सकता है। इस प्रकारके संवादको याद करकरके मैं बड़ा हर्षित हो रहा हूँ? प्रसन्न हो रहा हूँ।
श्रीभगवान् और अर्जुनके इस अद्भुत संवादकी महिमा भी बहुत विलक्षण है। भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन सदा साथमें रहनेपर भी इन दोनोंका ऐसा संवाद कभी नहीं हुआ। युद्धके समय अर्जुन घबरा गये क्योंकि एक तरफ तो उनको कुटुम्बका मोह तंग कर रहा था और दूसरी तरफ वे क्षात्रधर्मकी दृष्टिसे युद्ध करना अवश्य कर्तव्य समझते थे। मनुष्यकी जब किसी एक सिद्धान्तपर? एक मतपर स्थिति नहीं होती? तब उसकी व्याकुलता बड़ी विचित्र होती है (टिप्पणी प0 1000)। अर्जुन भीयुद्ध करना श्रेष्ठ है या युद्ध न करना श्रेष्ठ है — इन दोनोंमेंसे एक निश्चित निर्णय नहीं कर सके। इसी व्याकुलताके कारण अर्जुन भगवान्की तरफ खिंच गये? उनके सम्मुख हो गये। सम्मुख होनेसे भगवान्की कृपा उनको विशेषतासे प्राप्त हुई। अर्जुनकी अनन्य भावना? उत्कण्ठाके कारण भगवान् योगमें स्थित हो गये अर्थात् ऐश्वर्य आदिमें स्थित न रहकर केवल अपने प्रेमतत्त्वमें सराबोर हो गये और उसी स्थितिमें अर्जुनको समझाया। इस प्रकार उत्कट अभिलषासम्पन्न अर्जुन और अलौकिक अटलयोगमें स्थित भगवान्के संवादका क्या महिमा कहें उसकी महिमाको कहनेमें कोई भी समर्थ नहीं है।