शास्त्रविधिको जाननेवाले अथवा न जाननेवाले मनुष्योंको चाहिये कि वे श्रद्धापूर्वक जो कुछ शुभ कार्य करते हैं, उस कार्यको भगवान्को याद करके, भगवन्नामका उच्चारण करके आरम्भ करें।
जो शास्त्रविधिको तो नहीं जानते, पर श्रद्धापूर्वक यजन-पूजन करते हैं, उनकी श्रद्धा (निष्ठा, स्थिति) तीन प्रकारकी होती है-सात्त्विकी, राजसी और तामसी। श्रद्धाके अनुसार ही उनके द्वारा पूजे जानेवाले देवता भी तीन तरहके होते हैं। जो यजन-पूजन नहीं करते, उनकी श्रद्धाकी पहचान आहारसे हो जाती है, क्योंकि आहार (भोजन) तो सभी करते ही हैं।