दुर्गुण-दुराचारोंसे ही मनुष्य चौरासी लाख योनियों एवं नरकोंमें जाता है। अतः मनुष्यको सदुण सदाचारोंको धारण करके संसारके बन्धनसे, जन्म-मरणके चक्करसे रहित हो जाना चाहिये।
जो दम्भ, दर्प, अभिमान, काम, क्रोध, लोभ आदि आसुरी सम्पत्तिके गुणोंका त्याग करके अभय, अहिंसा, सत्य, अक्रोध, दया, यज्ञ, दान, तप आदि दैवी-सम्पत्तिके गुणोंको धारण करते हैं, वे संसारके बन्धनसे रहित हो जाते हैं। परन्तु जो केवल दुर्गुण-दुराचारोंका, काम, क्रोध, लोभ, चिन्ता, अहंकार आदिका आश्रय रखते हैं, उनमें ही रचे-पचे रहते हैं, ऐसे वे आसुरी-सम्पदावाले मनुष्य चौरासी लाख योनियों एवं नरकोंमें जाते हैं।