इस संसारका मूल आधार और इस संसारमें अत्यन्त श्रेष्ठ परमपुरुष एक परमात्मा ही है-इसको दृढ़तापूर्वक मान लेनेसे मनुष्य सर्ववित् हो जाता है, कृतकृत्य हो जाता है।
जिससे यह संसार अनादिकालसे चला आ रहा है और जिसको प्राप्त होनेपर यह जीव फिर लौटकर संसारमें नहीं आता, उस परमात्माकी खोज करनी चाहिये। ज्ञान-नेत्रवाले साधक अपने-आपमें उस परमात्माका अनुभव कर लेते हैं। वह परमात्मा ही सूर्य, चन्द्रमा और अग्निमें तेजरूपसे रहकर संसारमें प्रकाश करता है। वही पृथ्वीमें प्रवेश करके पृथ्वीको धारण करता है। वही रसमय चन्द्रमा होकर पेड़, पौधे, लता आदिको पुष्ट करता है। वही जठराग्नि बनकर प्राणियोंके द्वारा खाये गये अन्नको पचाता है। वही सबके हृदयमें रहनेवाला, वेदोंको बनानेवाला, वेदोंको जाननेवाला और वेदोंके द्वारा जाननेयोग्य है। वह सम्पूर्ण संसारका पालन-पोषण करता है। वह नाशवान् संसारसे अतीत और अविनाशी जीवात्मासे उत्तम है। वही लोकमें और वेदमें पुरुषोत्तम नामसे प्रसिद्ध है। उसको सर्वश्रेष्ठ मानकर अनन्यभावसे उसका भजन करना चाहिये।