सम्पूर्ण संसार त्रिगुणात्मक है। इससे अतीत होनेके लिये गुणोंको और उनकी वृत्तियोंको जरूर जानना चाहिये।
प्रकृतिसे उत्पन्न सत्त्व, रज और तम ये तीनों गुण शरीर संसारमें आसक्ति, ममता आदि करके जीवात्माको बाँध देते हैं। सत्त्वगुण सुख और ज्ञानकी आसक्तिसे, रजोगुण कर्मोंकी आसक्तिसे और तमोगुण प्रमाद, आलस्य एवं निद्रासे मनुष्यको बन्धनमें डालता है। रजोगुण और तमोगुणको दबाकर जब सत्त्वगुण बढ़ता है, तब अन्तःकरणमें रज-तमके विरुद्ध प्रकाश हो जाता है। सत्त्वगुण और तमोगुणको दबाकर जब रजोगुण बढ़ता है, तब अन्तःकरणमें लोभ; क्रियाशीलता आदि सत्त्व-तमके विरुद्ध वृत्तियाँ बढ़ जाती हैं। सत्त्वगुण और रजोगुणको दबाकर जब तमोगुण बढ़ता है, तब अन्तःकरणमें अविवेक, कर्म करनेमें अरुचि, प्रमाद, मोह आदि सत्त्व-रजके विरुद्ध वृत्तियाँ बढ़ जाती हैं। इन गुणोंकी वृत्तियोंके बढ़नेपर मरनेवाला प्राणी क्रमशः ऊँचे, मध्य और नीचेके लोकोंमें जाता है। परन्तु जो इन गुणोंके सिवाय अन्यको कर्ता नहीं मानता अर्थात् सम्पूर्ण क्रियाएँ गुणोंमें ही हो रही हैं, स्वयंमें नहीं-ऐसा अनुभव करता है, वह गुणोंसे अतीत होकर भगवद्भावको प्राप्त हो जाता है। अनन्यभक्तिसे भी मनुष्य गुणोंसे अतीत हो जाता है।