Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas
।।11.50।। व्याख्या–‘इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः’–अर्जुनने जब भगवान्से चतुर्भुजरूप होनेके लिये प्रार्थना की, तब भगवान्ने कहा कि मेरे इस विश्वरूपको देखकर तू व्यथित और भयभीत मत हो। तू प्रसन्न मनवाला होकर मेरे इस रूपको देख (11। 49)। भगवान्के इसी कथनको सञ्जयने यहाँ ‘इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा’ पदोंसे कहा है।
‘तथा’ कहनेका तात्पर्य है कि जिस प्रकार कृपाके परवश होकर भगवान्ने अपना विश्वरूप दिखाया था, उसी प्रकार कृपाके परवश होकर भगवान्ने अर्जुनको चतुर्भुजरूप दिखाया। इस चतुर्भुजरूपको देखनेमें अर्जुनकी कोई साधना हो, योग्यता हो — यह बात नहीं है, प्रत्युत भगवान्की कृपाहीकृपा है।
‘भूयः’ कहनेका तात्पर्य है, जिस देवरूप(चतुर्भुजरूप) को अर्जुनने विश्वरूपके अन्तर्गत देखा था (11। 15? 17) और जिसे दिखानेके लिये अर्जुनने प्रार्थना की थी (11। 45 46)? वही रूप भगवान्ने फिर दिखाया।
‘आश्वासयामास च भीतमेनं भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा’– भगवान् श्रीकृष्णने अर्जुनको पहले चतुर्भुजरूप दिखाया। फिर अर्जुनकी प्रसन्नताके लिये महात्मा भगवान् श्रीकृष्ण पुनः द्विभुजरूप-(मनुष्यरूप-) से प्रकट हो गये और उन्होंने विश्वरूपको देखनेसे भयभीत हुए अर्जुनको आश्वासन दिया।भगवान् श्रीकृष्ण द्विभुज थे या चतुर्भुज? इसका उत्तर है कि भगवान् हरदम द्विभुजरूपसे ही रहते थे, पर समय-समयपर जहाँ उचित समझते थे, वहाँ चतुर्भुज-रूप हो जाते थे।दसवें और ग्यारहवें अध्यायमें भगवान्ने अपनी विभूतियोंका वर्णन करनेमें भी अपनी महत्ता, प्रभाव सामर्थ्यको बताया है और अपने अत्यन्त विलक्षण विश्वरूपको दिखानेमें भी अपने प्रभावको बताया है। अगर मनुष्य भगवान्के ऐसे महान् प्रभावको जान ले अथवा मान ले, तो उसका संसारमें आकर्षण नहीं रहे। वह सदाके लिये संसार-बन्धनसे छूट जाय।अर्जुनपर भगवान्की कितनी अद्भुत कृपा है कि भगवान्ने पहले विश्वरूप दिखाया, फिर देवरूप (चतुर्भुज-रूप) दिखाया और फिर मानुषरूप (द्विभुजरूप) हो गये। इसके साथ-साथ भगवान्ने हमलोगोंपर भी कितनी अलौकिक विलक्षण कृपा की है कि जहाँ-कहीं जिस किसी विशेषताको लेकर हमारा मन चला जाय, वहीं हम भगवान्का चिन्तन कर सकते हैं और भगवान्के विश्वरूपका पठन-पाठन, चिन्तन कर सकते हैं। इस भयंकर समयमें हमें भगवान्की विभूतियों तथा विश्वरूपके चिन्तन आदिका जो मौका मिला है, इसमें हमारा उद्योग, योग्यता कारण नहीं है, प्रत्युत भगवान्की कृपा ही कारण है। भगवान्की इस कृपाको देखकर,हमें प्रसन्न हो जाना चाहिये। इन विभूतियोंको सुनने और विश्वरूपके चिन्तन-स्मरणका मौका तो उस समय भी सञ्जय आदि बहुत थोड़े लोगोंको ही मिला था। वही मौका आज हमें प्राप्त हुआ है। अतः ऐसे मौकेको व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिये।
सम्बन्ध–भगवान्ने मनुष्यरूप होकर जब अर्जुनको आश्वासन दिया, तब अर्जुन बोले –