Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas
।।11.14।। व्याख्या–ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः–अर्जुनने भगवान्के रूपके विषयमें जैसी कल्पना भी नहीं की थी, वैसा रूप देखकर उनको बड़ा आश्चर्य हुआ। भगवान्ने मेरेपर कृपा करके विलक्षण आध्यात्मिक बातें अपनी ओरसे बतायीं और अब कृपा करके मेरेको अपना विलक्षण रूप दिखा रहे हैं– इस बातको लेकर अर्जुन प्रसन्नताके कारण रोमाञ्चित हो उठे।
‘प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत’–भगवान्की विलक्षण कृपाको देखकर अर्जुनका ऐसा भाव उमड़ा कि मैं इसके बदलेमें क्या कृतज्ञता प्रकट करूँ? मेरे पास कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो मैं इनके अर्पण करूँ। मैं तो केवल सिरसे प्रणाम ही कर सकता हूँ अर्थात् अपने-आपको अर्पित ही कर सकता हूँ। अतः अर्जुन हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर प्रणाम करते हुए विश्वरूप भगवान्की स्तुति करने लगे।
सम्बन्ध —अर्जुन विराट्रूप भगवान्की जिस विलक्षणताको देखकर चकित हुए, उसका वर्णन आगेके तीन श्लोकोंमें करते हुए भगवान्की स्तुति करते हैं।