अर्जुनने भगवान्की कृपासे जिस दिव्य विश्वरूपके दर्शन किये, उसको तो हरेक मनुष्य नहीं देख सकता; परन्तु आदि-अवताररूपसे प्रकट हुए इस संसारको श्रद्धापूर्वक भगवान्का रूप मानकर तो हरेक मनुष्य विश्वरूपके दर्शन कर सकता है।
अर्जुनने विश्वरूप दिखानेके लिये भगवान्से नम्रतापूर्वक प्रार्थना की तो भगवान्ने दिव्यनेत्र प्रदान करके अर्जुनको अपना दिव्य विश्वरूप दिखा दिया। उसमें अर्जुनने भगवान्के अनेक मुख, नेत्र, हाथ आदि देखे; ब्रह्मा, विष्णु और शंकरको देखा; देवताओं, गन्धर्वो, सिद्धों, सर्पों आदिको देखा। उन्होंने विश्वरूपके सौम्य, उग्र, अत्युग्र आदि कई स्तर देखे। इस दिव्य विश्वरूपको हम सब नहीं देख सकते, पर नेत्रोंसे दीखनेवाले इस संसारको भगवान्का स्वरूप मानकर अपना उद्धार तो हम कर ही सकते हैं। कारण कि यह संसार भगवान्से ही प्रकट हुआ है, भगवान् ही सब कुछ बने हुए हैं।