संसारमें एक परमात्मतत्त्व ही जाननेयोग्य है। उसको जरूर जान लेना चाहिये। उसको तत्त्वसे जाननेपर जाननेवालेकी परमात्मतत्त्वके साथ अभिन्नता हो जाती है।
जिस परमात्माको जाननेसे अमरताकी प्राप्ति हो जाती है, उस परमात्माके हाथ, पैर, सिर, नेत्र, कान सब जगह हैं। वह सम्पूर्ण इन्द्रियोंसे रहित होनेपर भी सम्पूर्ण विषयोंको प्रकाशित करता है, सम्पूर्ण गुणोंसे रहित होनेपर भी सम्पूर्ण गुणोंका भोक्ता है और आसक्तिरहित होनेपर भी सबका पालन-पोषण करता है। वह सम्पूर्ण प्राणियोंके बाहर भी है और भीतर भी है तथा चर-अचर प्राणियोंके रूपमें भी वही है। सम्पूर्ण प्राणियोंमें विभक्त रहता हुआ भी वह विभागरहित है। वह सम्पूर्ण ज्ञानोंका प्रकाशक है। वह सम्पूर्ण विषम प्राणियोंमें सम रहता है, गतिशील प्राणियोंमें गतिरहित रहता है, नष्ट होते हुए प्राणियोंमें अविनाशी रहता है। इस तरह परमात्माको यथार्थ जान लेनेपर परमात्माको प्राप्त हो जाता है।