भक्त भगवान्का अत्यन्त प्यारा होता है; क्योंकि वह शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धिसहित अपने-आपको भगवान्के अर्पण कर देता है।
जो परम श्रद्धापूर्वक अपने मनको भगवान्में लगाते हैं, वे भक्त सर्वश्रेष्ठ हैं। भगवान्के परायण हुए जो भक्त सम्पूर्ण कर्मोंको भगवान्के अर्पण करके अनन्यभावसे भगवान्की उपासना करते हैं, भगवान् स्वयं उनका संसार-सागरसे शीघ्र उद्धार करनेवाले बन जाते हैं। जो अपने मन-बुद्धिको भगवान्में लगा देता है, वह भगवान्में ही निवास करता है। जिनका प्राणिमात्रके साथ मित्रता एवं करुणाका बर्ताव है, जो अहंता-ममतासे रहित हैं, जिनसे कोई भी प्राणी उद्विग्न नहीं होता तथा जो स्वयं किसी प्राणीसे उद्विग्न नहीं होते, जो नये कर्मोंके आरम्भोंके त्यागी हैं, जो अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियोंके आनेपर हर्षित एवं उद्विग्न नहीं होते, जो मान-अपमान आदिमें सम रहते हैं, जो जिस किसी भी परिस्थितिमें निरन्तर सन्तुष्ट रहते हैं, वे भक्त भगवान्को प्यारे हैं। अगर मनुष्य भगवान्के ही होकर रहें, भगवान्में ही अपनापन रखें, तो सभी भगवान्के प्यारे बन सकते हैं।