Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas
।।11.38।। व्याख्या–‘त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणः’– आप सम्पूर्ण देवताओंके आदिदेव हैं; क्योंकि सबसे पहले आप ही प्रकट होते हैं। आप पुराणपुरुष हैं; क्योंकि आप सदासे हैं और सदा ही रहनेवाले हैं।
‘त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्’– देखने, सुनने, समझने और जाननेमें जो कुछ संसार आता है; और संसारकी उत्पत्ति, स्थिति,प्रलय आदि जो कुछ होता है, उस सबके परम आधार आप हैं।
‘वेत्तासि’–आप सम्पूर्ण संसारको जाननेवाले हैं अर्थात् भूत, भविष्य और वर्तमान काल तथा देश, वस्तु, व्यक्ति आदि जो कुछ है, उन सबको जाननेवाले (सर्वज्ञ) आप ही हैं।
‘वेद्यम्’–वेदों, शास्त्रों, सन्तमहात्माओं आदिके द्वारा जाननेयोग्य केवल आप ही हैं।
‘परं धाम’–जिसको मुक्ति, परमपद आदि नामोंसे कहते हैं, जिसमें जाकर फिर लौटकर नहीं आना पड़ता और जिसको प्राप्त करनेपर करना, जानना और पाना कुछ भी बाकी नहीं रहता, ऐसे परमधाम आप हैं।
‘अनन्तरूप’– विराट्रूपसे प्रकट हुए आपके रूपोंका कोई पारावार नहीं है। सब तरफसे ही आपके अनन्त रूप हैं।
‘त्वया ततं विश्वम्’–आपसे यह सम्पूर्ण संसार व्याप्त है अर्थात् संसारके कणकणमें आप ही व्याप्त हो रहे हैं।