Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas
।।11.17।। व्याख्या–‘किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च’–आपको मैं किरीट, गदा और चक्र धारण किये हुए देख रहा हूँ। यहाँ ‘च’ पदसे शङ्क और पद्मको भी ले लेना चाहिये। इसका तात्पर्य ऐसा मालूम देता है कि अर्जुनको विश्वरूपमें भगवान् विष्णुका चतुर्भुजरूप भी दीख रहा है।
‘तेजोराशिम्’–आप तेजकी राशि हैं, मानो तेजका समूह-का-समूह (अनन्त तेज) इकट्ठा हो गया हो। इसका पहले सञ्जयने वर्णन किया है कि आकाशमें हजारों सूर्य एक साद उदित होनेपर भी भगवान्के तेजकी बराबरी नहीं कर सकते (11। 12)। ऐसे आप प्रकाशस्वरूप हैं।
‘सर्वतो दीप्तिमन्तम्’–स्वयं प्रकाशस्वरूप होनेसे आप चारों तरफ प्रकाश कर रहे हैं।
‘पश्यामि त्वं दुर्निरीक्ष्यं समन्ताद् दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम्’–खूब देदीप्यमान अग्नि और सूर्यके समान आपकी कान्ति है। जैसे सूर्यके तेज प्रकाशके सामने आँखें चौंध जाती हैं, ऐसे ही आपको देखकर आँखें चौंध जाती हैं। अतः आप कठिनतासे देखे जानेयोग्य हैं। आपको ठीक तरहसे देख नहीं सकते।
[यहाँ एक बड़े आश्चर्यकी बात है कि भगवान्ने अर्जुनको दिव्यदृष्टि दी थी, पर वे दिव्यदृष्टिवाले अर्जुन भी विश्वरूपको देखनेमें पूरे समर्थ नहीं हो रहे हैं!/ ऐसा देदीप्यमान भगवान्का स्वरूप है!]आप सब तरफसे अप्रमेय (अपरिमित) हैं अर्थात् आप प्रमा-(माप-) के विषय नहीं है। प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति, अनुपलब्धि आदि कोई भी प्रमाण आपको बतानेमें काम नहीं करता; क्योंकि प्रमाणोंमें शक्ति आपकी ही है।
सम्बन्ध–अब आगेके श्लोकमें अर्जुन भगवान्को निर्गुणनिराकार, सगुणनिराकार और सगुणसाकाररूपमें देखते हुए भगवान्की स्तुति करते हैं।