Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas
।।11.10।। व्याख्या–‘अनेकवक्त्रनयनम्’–विराट्रूपसे प्रकट हुए भगवान्के जितने मुख और नेत्र दीख रहे हैं, वे सब-के-सब दिव्य हैं। विराट्रूपमें जितने प्राणी दीख रहे हैं, उनके मुख, नेत्र, हाथ, पैर आदि सबकेसब अङ्ग विराट्रूप भगवान्के हैं। कारण कि भगवान् स्वयं ही विराट्रूपसे प्रकट हुए हैं।
‘अनेकाद्भुतदर्शनम्’–भगवान्के विराट्रूपमें जितने रूप दीखते हैं, जितनी आकृतियाँ दीखती हैं, जितने रंग दीखते हैं, जितनी उनकी विचित्र रूपसे बनावट दीखती है, वह सबकीसब अद्भुत दीख रही है।‘अनेकदिव्याभरणम्’–विराट्रूपमें दीखनेवाले अनेक रूपोंके हाथोंमें, पैरोंमें, कानोंमें, नाकोंमें, और गलोंमें जितने गहने हैं, आभूषण हैं, वे सब-के-सब दिव्य हैं। कारण कि भगवान् स्वयं ही गहनोंके रूपमें प्रकट हुए हैं।
‘दिव्यानेकोद्यतायुधम्’–विराट्रूप भगवान्ने अपने हाथोंमें चक्र, गदा, धनुष, बाण, परिघ आदि अनेक प्रकारके जो आयुध (अस्त्र-शस्त्र) उठा रखे हैं, वे सब-के-सब दिव्य हैं।‘दिव्यमाल्याम्बरधरम्’–विराट्रूप भगवान्ने गलेमें फूलोंकी, सोनेकी, चाँदीकी, मोतियोंकी, रत्नोंकी, गुञ्जाओं,आदिकी अनेक प्रकारकी मालाएँ धारण कर रखी हैं। वे सभी दिव्य हैं। उन्होंने अपने शरीरोंपर लाल, पीले, हरे, सफेद, कपिश आदि अनेक रंगोंके वस्त्र पहन रखे हैं, जो सभी दिव्य हैं।
‘दिव्यगन्धानुलेपनम्’–विराट्रूप भगवान्ने ललाटपर कस्तूरी, चन्दन, कुंकुम आदि गन्धके जितने तिलक किये हैं तथा शरीरपर जितने लेप किये हैं, वे सब-के-सब दिव्य हैं।
‘सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्’ —इस प्रकार देखते ही चकित कर देनेवाले, अनन्तरूपवाले तथा चारों तरफ मुख-ही-मुखवाले अपने परम ऐश्वर्यमय रूपको भगवान्ने अर्जुनको दिखाया।जैसे, कोई व्यक्ति दूर बैठे ही अपने मनसे चिन्तन करता है कि मैं हरिद्वारमें हूँ तथा गङ्गाजीमें स्नान कर रहा हूँ, तो उस समय उसको गङ्गाजी, पुल, घाटपर खड़े स्त्री-पुरुष आदि दीखने लगते हैं तथा मैं गङ्गाजीमें स्नान कर रहा हूँ — ऐसा भी दीखने लगता है। वास्तवमें वहाँ न हरिद्वार है और न गङ्गाजी हैं; परन्तु उसका मन ही उन सब रूपोंमें बना हुआ उसको दीखता है। ऐसे ही एक भगवान् ही अनेक रूपोंमें, उन रूपोंमें पहने हुए गहनोंके रूपमें, अनेक प्रकारके आयुधोंके रूपमें, अनेक प्रकारकी मालाओंके रूपमें, अनेक प्रकारके वस्त्रोंके रूपमें प्रकट हुए हैं। इसलिये भगवान्के विराट्रूपमें सब कुछ दिव्य है।श्रीमद्भागवतमें आता है कि जब ब्रह्माजी बछड़ों और ग्वालबालोंको चुराकर ले गये, तब भगवान् श्रीकृष्ण स्वयं ही बछड़े और ग्वालबाल बन गये। बछड़े और ग्वालबाल ही नहीं, प्रत्युत उनके बेंत, सींग, बाँसुरी, वस्त्र, आभूषण आदि भी भगवान् स्वयं ही बन गये (श्रीमद्भा0 10। 13। 19)।
सम्बन्ध–अब सञ्जय विश्वरूपके प्रकाशका वर्णन करते हैं।