Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas
।।10.28।। व्याख्या–‘आयुधानामहं वज्रम्’–जिनसे युद्ध किया जाता है, उनको आयुध (अस्त्र-शस्त्र) कहते हैं। उन आयुधोंमें इन्द्रका वज्र मुख्य है। यह दधीचि ऋषिकी हड्डियोंसे बना हुआ है और इसमें दधीचि ऋषिकी तपस्याका तेज है। इसलिये भगवान्ने वज्रको अपनी विभूति कहा है।
‘धेनूनामस्मि कामधुक्’–नयी ब्यायी हुई गायको धेनु कहते हैं। सभी धेनुओँमें कामधेनु मुख्य है, जो समुद्र-मन्थनसे प्रकट हुई थी। यह सम्पूर्ण देवताओं और मनुष्योंकी कामनापूर्ति करनेवाली है। इसलिये यह भगवान्की विभूति है।
‘प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः’–संसारमात्रकी उत्पत्ति कामसे ही होती है। धर्मके अनुकूल केवल सन्तानकी उत्पत्तिके लिये सुखबुद्धिका त्याग करके जिस कामका उपयोग किया जाता है, वह काम भगवान्की विभूति है। सातवें अध्यायके ग्यारहवें श्लोकमें भी भगवान्ने कामको अपनी विभूति बताया है —
‘धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ’ अर्थात् सब प्राणियोंमें धर्मके अनुकूल काम मैं हूँ।
‘सर्पाणामस्मि वासुकिः’ — वासुकि सम्पूर्ण सर्पोंके अधिपति और भगवान्के भक्त हैं। समुद्र-मन्थनके समय इन्हींकी मन्थन-डोरी बनायी गयी थी। इसलिये भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है।इन विभूतियोंमें जो विलक्षणता दिखायी देती है, वह प्रतिक्षण परिवर्तनशील संसारकी हो ही कैसी सकती है! वह तो परमात्माकी ही है।